सोत नदी किसानों को बचा सकती है सिंगथरा झील की बाढ़ से



सोत नदी बदायूं शहर से होकर बहती है। ऐतिहासिक नगरी बदायूं गंगा व रामगंगा नदी के बीच स्थित है। सोत या स्रोत नदी को कभी गंगा के बाद दूसरी बड़ी नदी माना जाता था। गंगा की सहायक नदी सोत का उद्गम मुरादाबाद से होता है और यह बिसौली तहसील से प्रवेश करके बदायूं व दातागंज तहसीलों से होते हुए शाहजहांपुर जिले में गंगा से जा मिलती है। यह एक बरसाती नदी है, जो बदायूं में बड़े सरकार की दरगाह के निकट होकर बहती है। ढाई सौ साल पहले मुगल शासक मोहम्मद शाह ने रामपुर पर हमला करने के बाद लौटते वक्त इसके किनारे आराम किया था। तरोताजा होने पर खुश होकर उन्होंने इस नदी को यार-ए-वफादार नाम दिया था।

बदायूं में गंगा की इस सहायक नदी के किनारे बहुत से अतिक्रमण हो रखे थे, जिन्हें अब हटाया जा रहा है। बदायूं की मौजूदा सांसद डॉ. संघमित्रा मौर्य ने सोत नदी और बिल्सी से बदायूं की बीच बहने वाली एक अन्य बरसाती नदी भैंसोर के जीर्णोद्धार की पहल की है। उनकी योजना सोत नदी के किनारे-किनारे वृक्षारोपण करने की है। बदायूं में जहां-जहां नदी उथली हो गयी है, उन स्थानों पर मनरेगा के तहत खुदाई कार्य शुरू किया गया है। बदायूं सदर के विधायक एवं उत्तर प्रदेश सरकार में नगर विकास राज्य मंत्री महेश चंद गुप्ता की पहल पर बदायूं बाईपास के रास्ते सोत नदी पर 16 करोड़ रुपये लागत से पुल निर्माण मंजूर् हो गया है।

सोत नदी बिसौली तहसील में मौजूद सिंगथरा झील क्षेत्र से होकर बहती है। अस्सी के दशक में, पलई निवासी एक युवा पत्रकार नरविजय यादव के अनुरोध पर बिल्सी के विधायक एवं तत्कालीन सिंचाई मंत्री भोला शंकर मौर्य की पहल पर झील के बरसाती पानी को सोत नदी में डालने के लिए एक नहर खोदी गयी थी। सिंगथरा झील बरसात के दिनों में हजारों एकड़ कृषि भूमि को सैकड़ों वर्षों से बर्बाद करती आयी है। फसलें झील में डूब जाती हैं। यह समस्या अभी जारी है, क्योंकि नहर की सफाई नहीं की जाती है।

वर्ष 2010 के दौरान, एक पुलिया ऊंचाई पर बनाये जाने से झील का पानी नदी में जाना बंद हो गया। नहर में पानी का प्रवाह सुनिश्चित कर दिया जाये तो सोत नदी में अधिक पानी पहुंच सकता है। सोत में पानी बढ़ने से जिले के हजारों किसानों के खेत हरे-भरे होंगे, जबकि पलई-सिंगथरा और वाकरपुर की कृषि भूमि बाढ़ से निजात पा सकेगी।

सिंगथरा झील की बाढ़ अंग्रेजों के शासन काल में एक समस्या थी। तब पानी के निकास के लिए उल्टी दिशा में एक नहर बना दी गयी। ऊंचाई होने के कारण उसमें पानी नहीं गया और बाढ़ कहर बरपाती रही। आजादी के बाद ग्रामीणों ने श्रमदान से नहर बनानी चाही तो मई-वसई गांव के दबंगों ने बाधा डाल दी। वे हाईकोर्ट से स्टे ले आये, क्योंकि उनके खेत नहर के रास्ते में पड़ते थे।

तत्कालीन सिंचाई मंत्री भोलाशंकर मौर्य ने आपातकालीन आदेश जारी कर नहर का निर्माण करवाया और नरविजय यादव के सुझाव के अनुसार गौंटिंया-सिंगथरा से पलई तक पक्का मार्ग बनवा दिया। बाद में प्रधानमंत्री सड़क योजना के तहत इस पर डामर बिछा दिया गया। नरविजय तब इलाहाबाद विश्वविद्यालय के एक छात्र थे और उन्होंने पूरे क्षेत्र का भ्रमण करके सभी तथ्य एकत्र करके अखबारों में बाढ़ का मामला जोर-शोर से उठाया, जिससे नहर व सड़क बन पायी।

नरविजय यादव चंडीगढ़ स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं और नेस्कॉम कम्युनिटी के मानद सलाहकार भी हैं। उनका कहना है, “एक बार फिर सिंगथरा झील को बाढ़ से मुक्ति की दरकार है। बरसात में झील पानी से लबालब भर जाती है और खेती को बर्बाद करती है। नहर की सफाई और पानी का निकास दुरुस्त करके यहां खेती को बचाया जा सकता है और सोत नदी को एक नया जीवन दिया जा सकता है। ऐसा होने पर पलई सहित कई गांवों के किसानों को राहत मिलेगी।“      
    

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