डॉ. भावना बर्मी : दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का लगभग हर कदम राजनीति से प्रेरित होता है और ताजा निर्णय भी ऐसा ही है। केजरीवाल को सत्य-असत्य, सही-गलत से कुछ लेना देना नहीं होता। इस मनुष्य की नजर एक ही बात पर होती है कि क्या कहने और करने से उसे अधिकतम राजनीतिक लाभ होगा। तथापि उद्योगों, छोटी फैक्ट्रियों, दुकानों, कार्यालयों को खोलने का निर्णय समयोचित है।
गत 19 मार्च को जब माननीय प्रधानमंत्री जी ने जनता कर्फ्यू की अपील की थी, तो उन्होंने कहा था कि जान है तो जहान है। लेकिन लॉक डाउन के तृतीय चरण के समय प्रधानमंत्री जी का मंतव्य उनके नए मन्त्र से स्पष्ट हो गया। और नया मंत्र था - जान भी, जहान भी। लॉकडाउन जरूरी था। लॉक डाउन से कोरोना वायरस के प्रसार को नियंत्रित किया जा सका।
यदि लॉकडाउन न होता तो कोरोना संक्रमितों की संख्या लाखों में होती। लेकिन लॉकडाउन से आर्थिक गतिविधि रुक जाने से भारी नुकसान होता है और बेरोजगारी व भुखमरी जैसी समस्याएं पैदा हो जाती हैं। इसलिए अर्थव्यवस्था की गाड़ी को फिर से गतिमान करना अपरिहार्य है। अन्यथा, कोरोना से अधिक लोग तो भुखमरी से मर जाएंगे और देश कई साल पीछे चला जाएगा।
कोरोना को पूरी तरह से समाप्त करना या पूरी जनता को संक्रमित होने से बचा पाना असंभव है। जब तक कोरोना से बचाव की वैक्सीन नहीं बन जाती, हमें कोरोना से बचना होगा और काम भी करना होगा। लॉकडाउन से लोगों में कोरोना वायरस के प्रति जागरूकता उत्पन्न हो गई है। अब लोग आदतन शारीरिक दूरी बनाने लग गए हैं; मास्क या कपड़े से मुंह ढंक रहे हैं; सैनिटाइज़र या साबुन से हाथों को संक्रमण से बचाने लगे हैं। अब वह समय आ गया है कि एक ओर जहां कन्टेनमेंट ज़ोन की तकनीक से कोरोना के प्रसार को रोकने के प्रयास पूरे जोर से किये जाते रहें, दूसरी ओर काम धंधे भी पूरे मनोयोग और मेहनत से चलें, ताकि देश आर्थिक दौड़ में पिछड़ न जाए।
जहां
तक सुझावों की बात है, तो इन्हें दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है - संक्रमण से सुरक्षा सम्बन्धी और अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने सम्बन्धी। संक्रमण से सुरक्षा सम्बन्धी सुझाव ऐसे हो सकते
हैं- दुकानदारों और कर्मचारियों को पास देते हुए, खरीदारी के लिए लोगों को सप्ताह में केवल एक दिन निकलने की अनुमति दी जाये। इस के लिए आधार कार्ड संख्या के अंतिम अंक/ अंकों का उपयोग किया जा सकता है। दुकानदारों को फ़ोन पर या ऑनलाइन आर्डर लेते हुए कूरियर सेवा का उपयोग करने के लिए प्रेरित किया जाए। इन दोनों कदमों से बाज़ारों में भीड़भाड़ कम होगी और शारीरिक दूरी रखने में सुविधा होगी। दूसरे कदम से रोज़गार भी बढ़ेगा।
शारीरिक दूरी बनाने के लिए सरकार प्राइवेट सुरक्षा एजेंसियों की सेवाएं ले, जो शारीरिक दूरी रखते हुए लोगों को लाइन आदि लगवा कर व्यवस्था बनायें। पुलिस के पास पहले ही बहुत काम हैं। लेकिन यह करना भी बहुत जरूरी है, नहीं तो विभिन्न स्थानों पर संक्रमण की वैसी स्थिति हो जायेगी, जैसी सब्जी
मंडियों में हुई थी।
अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने सम्बन्धी सुझाव : सरकार ने श्रम कानूनों में बदलाव किये हैं, जिससे उद्योग गति से चलें और रुकावटें पैदा न हों। यह बहुत जरूरी और स्वागत योग्य है। इससे देशी-विदेशी कंपनियों को निवेश करने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा। विश्व भर की कंपनियां अपने उद्योग चीन से हटा कर अन्य देशों में ले जाने को उत्सुक हैं। श्रम कानूनों में बदलाव से उन्हें चीन जैसा वातावरण मिलेगा। सरकार अपने स्तर पर उद्योगों को भारत में लाने के लिए सभी उपाय करेगी। देश के उद्यमियों को भी इस दिशा में प्रयास करने होंगें।
जो
वस्तुएं भारत या अन्य देशों को चीन से निर्यात की जाती रही हैं, उनका उत्पादन भारत में करना होगा। सभी अर्थशास्त्री एकमत हैं कि सरकार को इंफ्रास्ट्रक्टर पर भारी खर्च करना चाहिए और अनेकानेक तरीकों से व्यापारियों व अन्य लोगों के हाथों में पर्याप्त मात्रा में धन पंहुचाना चाहिए। इससे रोज़गार बढ़ेगा और जीडीपी भी। गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए जिस प्रकार से मोदी जी ने दुनिया भर के उद्योगपतियों को आमंत्रित कर उन्हें निवेश करने के लिए प्रेरित किया था और सभी सुविधायें देकर उन्हें उद्योग लगाने के लिए तैयार किया था, वैसा ही तरीका अन्य राज्यों के मुख्य मंत्रियों को अपनाना चाहिए।
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डॉ. भावना बर्मी, पीएचडी, एमफिल, निमहंस नई दिल्ली में क्लिनिकल एवं चाइल्ड
साइकोलॉजिस्ट, रिलेशनशिप एक्सपर्ठ और कॉर्पोरेट ट्रेनर हैं। वह हैप्पीनेस स्टूडियो
एवं साइकेयर की संस्थापक तथा एफईएचआई में मनोविज्ञान की विभागाध्यक्ष हैं।
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